इन्हें महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है तुलसीदास को हमेशा वाल्मिकी (संस्कृत में रामायण और हनुमान चालीसा के वास्वतिक रचयिता) के अवतरण के रुप में प्रशंसा मिली
तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास के सातवें दिन में चमकदार अर्ध चन्द्रमा के समय पर हुआ था।
इनके माता-पिता का नाम हुलसी और आत्माराम दुबे था
जहाँ बच्चे नो महीने तक माँ के गर्भ में रहते है वही तुलसीदास जी बारह महीने गर्भ में थे इनके जन्म से ही दांत निकले हुए थे |
इन्होने जन्म के साथ ही राम नाम का उच्चारण किया जिसकी वजह से इनका नाम रामबोला पड़ा
अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य नरहरि बाबा ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा
तुलसीदास का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से वर्ष 1583 में ज्येष्ठ महीने (मई या जून का महीना) में हुआ था।
रत्नावली की सिख से ही तुलसीराम "तुलसीदास" बने
वर्ष 1607 बुधवार मोनी अमावश्या के दिन भगवान प्रकट हुए | भगवान बालक के रूप में आये और तुलसीदास जी से चन्दन माँगा " है बाबाजी ! हमे चन्दन चाहिए "
भगवान हनुमान जी की असीम कृपा से वे भगवान राम को पहचानने में सफल रहे और उन्हें उनकी अद्भुत छवि को देखकर अपनी सुध-बुध ही भूल गये | आखिर भगवान राम ने चन्दन लेके खुद ही तुलसीदास जी के माथे पर लगाया और अंतर्ध्यान हो गये
रामचरितमानस को तुलसीदास जी ने वर्ष 1631 में चैत्र मास के रामनवमी पर अयोध्या में लिखना शुरू किया था | इसे लिखने में तुलसीदास जी को 2 वर्ष , 7 महीने, और 26 दिन का समय लगा
तुलसीदास की मृत्यु सन् 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार के दिन गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर हुआ। उन्होंने अपनी अंतिम कृति विनय-पत्रिका लिखी
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