“Mahatma Gandhi biography in hindi”
(2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)
Mahatma Gandhi biography in hindi short detail :-
- पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी
- अन्य नाम :– महात्मा, राष्ट्र-पिता, बापू
- जन्म-तिथि :– 2 अक्टूबर 1869,
- स्थान :- पोरबन्दर (गुजरात)
- माता का नाम :– पुतलीबाई,
- पिता का नाम :- करमचंद गाँधी
- पत्नी – कस्तूरबा गाँधी
- बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
- शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,
- विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
- इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी
- प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
- राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
- स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली)
- मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली
- मृत्यु का कारण – हत्या (नाथू राम गोड्शे )
Mahatma Gandhi biography in hindi महात्मा गाँधी का जीवन परिचय :-
महात्मा गाँधी का जन्म वर्ष 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में हुआ था | उनके पिता पंसारी जाती से सम्बन्ध रखते थे | इनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थी |पुतलीबाई करमचंद गाँधी जी की चोथी पत्नी थी | इनकी तीनो पत्नियों की मर्त्यु प्रसव के दौरान हो गयी थी | माता पुतलीबाई की धार्मिक पर्वर्ती के प्रभाव इन पर शुरू से ही पड़ गये इन प्रभावों में शामिल थे “शाकाहारी जीवन ” “आत्म-शुधि के लिए उपवास” “दुर्बलो में जोश की भावना “ इन्ही प्रभावों ने आगे चलकर महात्मा गांधीजी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने सचिव और मित्र महादेव देसाई से कहा था, “तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपनी माता से पाई है”|
महात्मा गाँधी का विवाह :-
गाँधीजी का विवाह कम उम्र की आयु में सन् 1883 मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुआ था । गाँधीजी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें पढना-लिखना सिखाया।
सन् 1885 में गांधीजी की पहली संतान ने जन्म लिया | लेकिन वह ज्यादा समय तक जीवित नहीं रही और उसी वक्त पिता करमचंद गाँधी भी चल बसे | गांधीजी के चार संतान थी और चारो बेटे थे (1).हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।
गांधीजी की प्राम्भिक शिक्षा :
महात्मा गाँधी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई | पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली होने के कारण गाँधीजी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधीजी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधीजी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे और किसी किसी प्रतियोगिता और खेलों में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती।
सन् 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया। साल 1887 में उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।
विदेश में शिक्षा व विदेश में ही वकालत :
महात्मा गाँधी को एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।
दिनांक 4 सितम्बर 1888 को गाँधीजी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हो गये यहाँ आने के बाद गांधीजी ने मन लगाकर किया | इंग्लैण्ड में गाँधीजी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।
बाद में उन्होने संस्थाएँ गठित करने में महत्वपूर्ण अनुभव का परिचय देते हुए इसे श्रेय दिया। वहा पर वे कुछ ऐसे शाहकारी लोगों से मिले जो थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्य थे | इस सोसायटी की स्थापना सनातन धर्म और बोद्ध धर्म के साहित्य के अध्यन के लिए की गयी थी | यही से गांधीजी श्रीमद भगवतगीता पढने के लिए प्रेरित हुए |
यह इंग्लेंड और वेल्स बार एसोसिएशन के बुलावे पर वे भारत लौट आये | किन्तु बम्बई में वकालत करने पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली अतः उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने शुरू किया और राजकोट को ही अपना स्थायी मुकाम बना लिया। लेकिन एक अंग्रेज अधिकारी की गलती की वजह से उन्हें यह कार्य भी छोड़ना पड़ा |इसी कारण उन्होंने एक भारतीय कंपनी के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में वकालत करना स्वीकार किया |
महात्मा गाँधी की दक्षिण-अफ्रीका यात्रा:-
1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। वहा पर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार किया |
यहा पर उन्हें भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा | यहाँ उनके साथ एसी कई घटनाये हुयी जिनको उन्होंने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव का अनुभव किया | एक घटना में उन्हें रेल यात्रा में प्रथम श्रेणी का टिकट होने पर तीसरी श्रेणी में जाने इंकार करने पर उन्हें ट्रेन से बाहर फेक दिया गया |
एक अन्य घटना में उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था इस वजह से घोडा चालक ने उन्हें पीटा | अफ्रीका की कई होटलों ने उन्हें प्रवेश पर वर्जित कर दिया था | एक अन्य घटना में कोर्ट के न्ययाधीश ने उन्हें उनकी पगड़ी तक उतारने के आदेश दे दिए |
दक्षिण-अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) :–
- संघर्ष के प्रथम चरण में वे इस भेदभाव के लिए सरकार को केवल याचिकाये भेजते रहे
- इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों का आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।
- भारतीयों को एक साथ करने के लिए उन्होंने वर्ष 22 अगस्त 1894 में ” नेटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया “|
- “इंडियन ओपिनियन ” नामक अख़बार का प्रकाशन भी किया |
संघर्ष का दूसरा चरण 1906 :-
- यही से गांधीवाद की शुरुआत मानी जाती है
- 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
- काग्रेंस के अधिवक्ताओ को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।
Mahatma Gandhi biography in hindi:भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका
1.चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)
वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये महात्मा गाँधी ने आन्दोलन शुरू किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।
ग्रामीणों में विश्वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया।
लेकिन इसके प्रमुख प्रभाव उस समय देखने को मिले जब उन्हें अशांति फैलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया | हजारों की संख्या में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए ओर जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गांधीजी को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। गांधीजी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस संघर्ष के दौरान ही, महात्मा गाँधी को जनता ने बापू ,पिता और महात्मा (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया।
2.असहयोग आन्दोलन (1919-1920):
महात्मा गाँधी ने असहयोग,अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में प्रयोग किया |असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था। जिसे अमर्त्सर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है | इस घटना ने देश को भारी आघात पहुँचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी।
गाँघीजी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कम-काज ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेबस हो गये।
1920 में गाँधीजी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनता को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया। इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी बनाने के लिये और हिन्दू-मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।
सरकारी आकडों के अनुसार वर्ष 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 5 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 65 लाख कार्य-दिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय अपने अपने ढंग से गाँधीजी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।
खिलाफत आन्दोलन (1919-1924):-
तुर्की के खलीफा पद की स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। गाँधीजी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।
चौरी-चौरा काण्ड (1922):-
इस आन्दोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था क्योंकि गाँधीजी को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये दिनांक 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।
इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था | यह दांङी मार्च गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।
भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942):-
क्रिप्श मिशन के असफल होने के बाद गाँधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। वर्ष 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधीजी के साथ पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया।
स्वतंत्रता और भारत का विभाजन:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने की सोच ली थी | भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।
महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948):-
नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को गाँधीजी को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गयी जब वह नयी दिल्ली के बिड़ला हाउस के मैदान में चहलकदमी कर रहे थे। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधीजी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, “हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।
“राज घाट नयी दिल्ली में गांधीजी का स्मारक बना हुआ है जिस पर लिखा हुआ है “हे राम “.
आशा करता हूँ आपको हमारे द्वारा दी हुई Mahatma Gandhi biography in hindi बहुत पसंद आई होगी , आप हमारे साथ ऐसे ही बने रहिये और आपके सुझाव हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताइए |
धन्यवाद
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