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भक्त और भगवान की सच्ची घटना,सच्ची भक्ति की कहानी ,भक्त और भगवान की कहानी, भगवान की कहानियाँ , भक्तो की कहानियां , STORY IN HINDI.भक्त भगवान की प्रेरणादायक कहानी,bhagwan ki sachi kahaniyan..
आइये शुरू करते है :-भक्त और भगवान की सच्ची घटना पर आधारित कहानी :
भक्त और भगवान की सच्ची घटना:–एक बार एक आदमी था | जिसका नाम रतन था | वह सव्भाव से बहुत ही सरल था | लेकिन वह कुछ काम नहीं करता था, बस सारे दिन खाना और सो जाना | वह सफल होने के लिए कुछ नहीं करता था
खाना खाने के अलावा वह कुछ काम नहीं करता था | जब भी किसी के जीमने भी जाता तो खूब पेट भर के खाता और कहता “दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम “|
उसकी इस हरकत से उसके घरवाले बहुत परेशान थे तो घरवालो ने रतन को घर से बाहर निकाल दिया |
अब वह बहुत चिंतित हो गया | रतन को घर से निकालने से ज्यादा दुःख खाने का था की अब खाना केसे मिलेगा |
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वह इस चिंता में डूबा था की किसी आदमी ने उसे बोल दिया की तू अयोध्या चला जा | वहा बहुत खाने को मिलेगा | उसकी बात सुनकर रतन अयोध्या जा पंहुचा |
वहा एक मंदिर के सामने एक बाबाजी बेठे हुए थे | काफी हष्ट-पुष्ट गोल-मटोल थे तो रतन ने सोचा की ये भी बहुत खाते होंगे | अब वो तो केवल खाने के बारे में ही सोचे |
तो रतन ने बाबाजी को प्रणाम किया और कहा की “है महाराज आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिये ”
उन बाबाजी ने कहा :- ठीक है बेटा ! मेरे इतने शिष्य है तू और सही |
बाबाजी ने रतन को गुरु मंत्र दिया और अपना शिष्य बना लिया
रतन ने बाबाजी से कहा की मुझे यहाँ रहकर क्या करना होगा |
“भक्त और भगवान की सच्ची घटना “
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तो बाबाजी ने कहा की दो वक्त जब आरती हो तब खड़ा रहना होगा और राम नाम का सुमिरन करना होगा | और दो वक्त पंगत लगेगी तो उसमे खाना खा लेना |
ये सुनकर रतन ने कहा की महाराज दो बार की पंगत से मेरा काम नहीं चलने वाला |
यह बात सुनकर बाबाजी को हँसी आ गयी और बाबाजी ने कहा की कोई बात नहीं तू चार वक्त खा लेना |
ये सुनकर तो रतन बहुत खुश हुआ की करना कुछ नहीं है और बेठे-बेठे खाने को मिलेगा |
अब रतन की तो निकल पड़ी वह रोज दो वक्त की जगह चार वक्त पंगत में खाना खाने लग गया | रतन के तो बहुत मजे हो रहे थे |
लेकिन उसे क्या पता था की यहाँ भी मुसीबत आने वाली है |
एक दिन एकादशी पड़ी | जब वो सुबह उठा तो सारे चूल्हे ठन्डे पड़े | कही भी किसी प्रकार की खाने की वयवस्था नहीं |
तो वह गुरूजी के पास गया और बोला “गुरूजी आज भोजन नहीं बना”|
गुरूजी ने कहा “बेटा आज तो एकादशी है न कुछ बनेगा न कुछ मिलेगा ”
रतन ने कहा की “गुरूजी क्या मुझे भी नहीं” |
गुरूजी ने कहा “हाँ तुम्हे भी नहीं ”
रतन ने कहा ” गुरूजी अगर हमने एकादशी का उपवास किया तो हम मर जायेंगे,हमसे भूखा नही रहा जाता |
तो गुरूजी ने कहा की “क्या तुम खुद बना लोगे”?
अब रतन मरता क्या नही करता गुरूजी से कहा ” ठीक है गुरूजी में बना लूँगा “|
“भक्त और भगवान की सच्ची घटना “
तो गुरूजी ने कहा ” तुम भंडारे में से आटा ले लो उसके हिसाब से सामग्री ले लो और बनालो “|”और एक बात का ध्यान रखना की सरयू नदी के किनारे जेक बनाना यहाँ मत बनाना और अब तुम वैष्णव (बाबा बन गये हो ) हो गए हो तो पहले भगवान को भोग जरुर लगा देना |
फिर वह ढाई सेर आटा लेके गया उसके हिसाब से सामग्री ली और लगा खाना बनाने सरयू नदी के किनारे |
जब खाना बना लिया तो भगवान को भोग खाने के लिए बुलाने लगा |
राजा राम आइये , प्रभु राम आइये,मेरे भोजन का भोग लगाइए |
आज खाने में पुड़ी, मिठाई नहीं है , आज तो मेरे द्वारा बनाया हुआ सादा भोजन है और फीका पानी है | तो प्रभु आइये और मेरे भोजन का भोग लगाइये |
आप सोचो की ये रुखी रोटी और नदी का पानी कोन पिए मंदिर में भोग मिलेगा पकवान मिलेंगे | लेकिन आप धोखे में मत रह जाना वहाँ आज खाना नही बना है |
भक्त और भगवान की सच्ची घटना
इस प्रकार की प्राथना सुनकर भगवान खुश हो गए और उसके सामने माँ सीता के साथ प्रकट हो गए |
वह बहुत पर्सन्न हुआ की भगवान आ गए लेकिन फिर उदास हो गया की मेने तो एक भगवान को बुलाया था | यहाँ तो दो भगवान आ गये |
लेकिन कोई बात नहीं आप थोड़ी तो हमारी एकादशी करा ही दोगे |
भगवान ने भोग ग्रहण किया और जाने लगे |
तो उसने कहा की भगवान अगली बार जल्दी आ जाना, मुझे बहुत भूख लगती है |
तो भगवान ने कहा की ठीक है “आ जायेंगे , आ जायेंगे “|
“भक्त और भगवान की सच्ची घटना “
अब उसने ये बात गुरूजी को नहीं बताई की भगवान आये थे क्योकि वो तो बहुत सरल वयक्ति था उसने सोचा की ऐसे तो सबके ही आते होंगे |
अगली एकादशी आई तो उसने गुरूजी से कहा की थोडा तो आटा बढाओ वहा दो-दो भगवान आते है, आटा कम पड़ जाता है |
गुरूजी ने सोचा की भूखा रह गया होगा इसीलिए ऐसा कह रहा है |
तो गुरूजी ने कहा की तुम साढ़े तीन सेर आटा ले जाओ |
वह साढ़े तीन सेर आटा लेके गया उसी के हिसाब से सामग्री ली | और जाके सरयू नदी के किनारे खाना बनाया और भोग के लिए भगवान को बुलाने लगा | की…
राजा राम आइये , सीता-राम आइये,मेरे भोजन का भोग लगाइए |
तभी भगवान पर्कट हो गए | लेकिन ये क्या लक्ष्मण जी को भी साथ ले आये |
उसने भगवान से कहा की “अब ये कोन है”|
भगवान ने कहा की “छोटे भाई है ”
लेकिन कोई बात नहीं आप थोड़ी तो हमारी एकादशी करा ही दोगे |
भक्त और भगवान की सच्ची घटना
भगवान भोग ग्रहण करने लग गए |
वह भगवान के चरणों में शीश नवाता है और पूछता है की है भगवान अगली एकादशी को कितने आओगे मुझे पहले ही बता दीजिये |
लेकिन भगवान ने कुछ नहीं बताया और कहा की आ जायेंगे आ जायेंगे और चले गए |
अगली एकादशी आई उसने गुरूजी से फिर कहा की ” गुरूजी थोडा आटा और बढाइये वहा बहुत भगवान आते है “कम से कम पांच सेर आटा करो |
गुरूजी ने सोचा की इतना आटा तो ये खा नहीं सकता ये जरुर आते को बेचता होगा |
तो गुरूजी ने उसे आटे के लिए हाँ बोल दिया |
भक्त और भगवान की सच्ची घटना
उसने पांच सेर आटा लिया उसके हिसाब से सामग्री ली और पहुच गया सरयू के किनारे खाना बनाने |
उधर गुरूजी भी ध्यान रखे हुए थे की ये इतने आटे का क्या करते है |
कितना अजीब आदमी है उसने सोचा आज पहले भगवान को बुला लेते है उसके बाद जितने आयेंगे उसके हिसाब से खाना बना लेंगे | और भगवान को बुलाने लगा |
राजा राम आइये , सीता-राम आइये , राम-लक्ष्मण आइये . मेरे भोजन का भोग लगाइए |
पर ये क्या अबकी बार भगवान राम माँ सीता , लक्ष्मण जी, शत्रुघ्न जी , हनुमान जी पूरा राम दरबार आ गया |
रतन ने कहा भगवान की जय हो | लेकिन भगवान मेने खाना बनाया नही अतः खाना बनाओ और खाओ |
भगवान ने बोला की तुम क्यों नही बनाते |
तो वो बोला की जब मुझे मिलने वाला ही नहीं है तो बनाने से क्या फायदा | तो आप बनाओ और खाओ |
भगवान बोले “जेसी भक्त की इच्छा ”
भक्त और भगवान की सच्ची घटना
वह तो एक पेड़ के निचे बेठ गया और अब खाना जो पुरे जगत का पोषण करते है वह खाना बनाने लगे |
वहाँ गुरूजी आ गए देखने की आटे का क्या करता है |
गुरुदेव ने कहा की बालक क्या हो रहा है |
तो वह बोलता है की देखो आपने कितने भगवान मेरे ओइचे लगा दिए |
लेकिन गुरुदेव को कोई नहीं दिखे बस खाने का सामान पड़ा दिखे |
गुरूजी ने खा की “मुझे तो कोई नहीं दिख रहा ”
फिर वह भगवान से बोलता है की हे भगवान एक तो आपने मेरी एकादशी करायी और गुरूजी को दिख भी नहीं रहे |इन्हें भी दिखो | ये मेरे गुरुदेव है | में तो कुछ नहीं जानता ये तो सब जानते है |
“भक्त और भगवान की सच्ची घटना”
तो भगवान ने कहा की माना की इनमे सभी गुण है लेकिन जितने सरल तुम हो उतने ये नहीं है |
वह गुरूजी के पास आता है और कहता है की भगवान कह रहे है की जितना सरल में हूँ उतने आप नहीं है |
ये सुनकर गुरूजी की आँखों में आसूँ आ गए और सोचने लगे की सब मिला जिन्दगी में बस सरलता ही नहीं मिली |
फिर भगवान ने गुरूजी को भी दर्शन दिए और अंतर्ध्यान हो गये |
इस कहानी (भक्त और भगवान की सच्ची घटना) से हमे यह शिक्षा मिलती है की हमे हमेशा सरल सव्भाव रखना चाहिए | इससे कोई और खुश हो न हो लेकिन भगवान खुश जरुर होते है | जेसे बाल्टी कुएं में पानी लेने के लिए जाती है तो झुकी हुई ही रहती है और पानी लेके आ जाती है वेसे हम भी किसी के सामने जब सरल सव्भाव से पेश आते है तो सामने वाला भी हमारा आदर करता है |
आशा करता हूँ की आपको ये सुन्दर कहानी भक्त और भगवान की सच्ची घटना बहुत पसंद आई होगी | कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरुर बताये |
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Good story,